Shri Amarnath Yatra Sangharsh

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  • 1986 से कश्मीर घाटी की परिस्थति तेजी से बिगड़ना प्रारम्भ हुई। 1990 तक अधिकांश हिन्दुओं ने घाटी छोड़ दी।
  • पूरी घाटी में 'अमरनाथ गुफा' ही एक मात्र तीर्थ स्थान था जहाँ सम्पूर्ण भारत के हिन्द प्रतिवर्ष आते थे। वहाँ भी आतंकवादियों की धमकियों के कारण 1990 से 1994 तक निरन्तर तीर्थ यात्रियों की संख्या घटती गई।
  • 1994 में सरकार ने यात्रा के प्रमुख महन्त दीपेन्द्र गिरि को अपने विश्वास में लेकर कहा कि “छड़ी मुबारक” को वायुयान द्वारा ले जायें तथा यात्रा स्थगित कर दी जाये। परन्तु विश्व हिन्दु परिषद जम्मू के नेतृत्व में अन्य धार्मिक संस्थाओं तथा समाज ने सरकार की कुटिल नीति का विरोध किया परिणाम स्वरूप 500 यात्री दर्शन हेतु गये। जन भावना को देखकर सरकार को भी अपना निर्णय बदलना पड़ा।
  • 1995 से यह संख्या निरन्तर बढ़ती गयी 2012 में यह संख्या लगभग 6 लाख हो गयी है। जबकि सरकार द्वारा यात्रा अवधि कम की गयी है।
  • बर्फीले तूफान व आतंकवादी हमलों के कारण यात्रा की समुचित व्यवस्था हेतु सरकार द्वारा नितीश सेन कमेटी तथा मुखर्जी कमेटी का गठन किया गया। उनके सुझाव के अनुरूप सन् 2000 में जम्मू कश्मीर विधान सभा द्वारा 'श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड' का गठन किया गया।
  • यात्रा के सुचारू सञ्चालन हेतु परम्परागत मार्ग पहलगाम के अतिरिक्त नया मार्ग बाल टाल से प्रारम्भ किया। वहाँ यात्रा के सफल सञ्चालन हेतु बोर्ड को स्थान की आवश्यकता अनुभव हुई तो उन्होंने सरकार को आवेदन किया परन्तु सरकार किसी न किसी बहाने से निर्णय को टालती रही।
  • 2005 में सरकार ने बोर्ड को भूमि का आवंटन किया परन्तु सरकार अपने ही निर्णय के विरुद्ध न्यायालय में चली गयी। जन-दबाव के कारण बाद में यह निर्णय सरकार को वापिस लेना पड़ा। |
  • मई 2008 में मन्त्रीमण्डल के निर्णय के आधार पर बोर्ड को 100 एकड़ (40 देक्टेयर) भूमि यात्रा सञ्चालन हेतु तीन माह के लिये 2.5 करोड़ रुपये का भुगतान करने पर दी गयी।
  • इस्लामिक कट्टरवादियों तथा आंतकवादियों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर मुस्लिम कश्मीर पर हिन्दु भारत के हमले के रूप में प्रचारित किया, पूरी घाटी में प्रदर्शनों की बाढ़ आ गयी। तिरंगे जलाये गये व पाकिस्तानी झण्डे फहराये गये। सुरक्षाबलों पर हमले तथा पूरी घाटी आजादी के नारों से गूंज उठी। पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कान्फ्रेस तथा अलगाववादी नेता सभी भूमि स्थानान्तरण के विरुद्ध सड़कों पर उतर आये, इसी विषय पर पी.डी.पी. ने गुलाम नवी आजाद की गठबन्धन सरकार से समर्थन वापिस ले लिया।
  • 21 जून 2008 को अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष तथा तत्कालीन राज्यपाल एम.एन. बोहरा ने बिना बोर्ड की बैठक बुलाये असंवैधानिक रूप में 100 एकड़ जमीन तथा यात्रा का प्रबन्ध सरकार को सौंप दिया। गुलाम नवी सरकार ने मन्त्रीमण्डल की बैठक बुलाकर इस प्रस्ताव को तुरन्त स्वीकार कर लिया। अलगाववादियों ने आजादी की निर्णायक लड़ाई के स्वप्न देखने प्रारम्भ कर दिए।
  • फलस्वरूप भारत एवं विश्व के समस्त हिन्दु समाज में क्षोभ की लहर दौड़ गयी।
  • इससे ऐसा लगा कि कश्मीर में, भारत तथा करोड़ों हिन्दुओं के अराध्य देव “बाबा अमरनाथ” के लिये कोई जगह नहीं है।
  • 21 जून 2008 को दोपहर में जम्मू की सभी सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक संस्थाओं ने मिलकर 'श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति' का गठन किया तथा माँग रखी कि राज्यपाल तथा राज्य सरकार त्यागपत्र दे। आवंटित भूमि व इसका प्रबन्धन बोर्ड को सौंपने के लिये आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। इस आन्दोलन में समस्त हिन्दु समाज एक जुट हो गया।
  • 30 जून को 200 से अधिक संस्थाओं के 700 प्रतिनिधियों ने संघर्ष की घोषणा कर दी तथा जम्मू 8 दिन निरन्तर बन्द रहा। प्रदर्शनकारी एवं आन्दोलनकर्ता जनता व नेताओं को भीषण यातनायें दी गयीं। 7 जुलाई को इस आन्दोलन के कारण सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा।
  • 22 जुलाई 2008 को संसद में उमर अब्दुल्ला के बयान के बाद जम्मू में उग्र प्रदर्शन हुआ। अमर बलिदानी कुलदीप वर्मा के बलिदान और उसके शव का पुलिस-प्रशासन द्वारा किये गये अपमान के कारण आन्दोलन ने पुनः प्रचण्ड रूप ले लिया।
  • 23 जुलाई से 30 अगस्त तक सम्पूर्ण जम्मू सम्भाग में पूर्ण बन्द रहा समाज स्वयं स्फूर्त होकर कर्फ्यू तोड़कर सड़क पर उतर आया।
  • 700 स्थानों पर संघर्ष समितियों का गठन हुआ। 175 लोगों की प्रान्तीय संघर्ष समिति बनायी गयी। इसमें से 32 लोगों की कोर कमेटी निर्णय लेती थी। इसमें लगभग पूरा समाज सम्मिलित था।

आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण पक्ष

  • 50 दिन तक पूर्ण बन्द रहा, कोई सार्वजनिक वाहन नहीं चला।
  • तीन दिन के जेल भरो आन्दोलन में थाना स्तर पर गिरफ्तारी देने के लिए 9 लाख लोगों ने भाग लिया। एक दिन पुरुष, एक दिन महिला व एक दिन बच्चे गिरफ्तारी देने आये।
  • 15 अगस्त को सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार करके 600 स्थानों पर समिति के आह्वान पर तिरंगे ध्वज फहराये गये। मुख्य कार्यक्रम में 30000 संख्या रही।
  • आन्दोलन का नारा "बम-बम भोले” व प्रतीक "तिंरगा ध्वज' था।
  • श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जिला स्तर पर शोभायात्रायें निकली। जिनमें केवल जम्मू में ही 2 लाख लोगों की सहभागिता हुई। जागृत हिन्दु समाज के प्रभाव के कारण इस आन्दोलन के समर्थन में अनेक स्थानों पर मुस्लिम भी सम्मिलित हुए।
  • इसके समर्थन में सम्पूर्ण देश में भारत बन्द, चक्का जाम व जम्मू में जेल भरो आन्दोलन हुआ।
  • जन दबाव के कारण सरकार वार्ता को तैयार हुई तथा 30 सितम्बर को तीसरे दौर की वार्ता के बाद सरकार झुकी।
  • भूमि तथा प्रबन्धन श्राईन बोर्ड को सौंपा गया तथा आवंटन मूल्य स्थगित किया। भूमि भी 3 माह के स्थान पर स्थायी तौर पर बोर्ड को सौंप दी गयी। साथ ही आन्दोलनकारियों पर हुए मुकदमे वापिस हुए।
  • संघर्ष समिति ने 14 वीरगति प्राप्त परिवारों को 4 लाख रुपये प्रति परिवार सहायता राशि दी तथा 250 से अधिक घायल आन्दोलनकारियों के परिवारों को आर्थिक सहायता देकर उनको सम्मानित किया।
  • प्रशासन के 62 वर्ष के भेदभावपूर्ण व्यवहार के बाद इस आन्दोलन की सफलता के कारण राष्ट्रभक्त हिन्दु समाज आत्मविश्वास, विजय तथा स्वाभिमान से भर गया।